
वनांचल में धर्मांतरण की गतिविधियां तेज, परंपरा और संस्कृति पर मंडराता संकट।
कवर्धा जिले की पंडरिया विधानसभा के कुकदुर वनांचल क्षेत्र में धर्मांतरण की गतिविधियां लगातार बढ़ रही हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि पिछले 15 वर्षों से यहां संगठित रूप से धर्मांतरण का खेल चल रहा है। आदिवासी अंचल की गरीबी और अशिक्षा का फायदा उठाकर भोले-भाले वनवासियों को प्रलोभन दिया जा रहा है।
धर्मांतरण के तरीके– बीमारी ठीक करने और झाड़-फूंक का हवाला देकर आदिवासियों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
– हर रविवार को बड़े पैमाने पर प्रार्थना सभाएं आयोजित की जा रही हैं, जिनमें मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले से प्रचारक आते हैं।
– नेउर ऊपका खासरपानी , पोलमी और सज्जखार क्षेत्र में कई चर्च बनाए गए हैं, जिनमें से कुछ वन विभाग की जमीन पर अवैध रूप से तैयार किए गए हैं।
वन विभाग की भूमिका पर सवाल स्थानीय लोगों का आरोप है कि वन विभाग की भूमिका संदेह के घेरे में है। वनभूमि पर सड़क जैसी बुनियादी परियोजनाएं राष्ट्रपति की अनुमति के बिना नहीं बन सकतीं, तो चर्च निर्माण की इजाजत किस आधार पर दी गई?
परंपराओं से टकराव धर्मांतरण से आदिवासी समाज की परंपराओं पर असर दिख रहा है। ठेंगाटोला गांव में पास्टरों ने एक युवक के शव को दफना दिया, जबकि बैगा परंपरा में दाह संस्कार होता है। इससे गांव में आक्रोश फैल गया।
सरकार से उम्मीद छत्तीसगढ़ में वर्तमान में भाजपा की सरकार है और गृह विभाग उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा के पास है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि धर्मांतरण की गतिविधियों पर लगाम नहीं लगी, तो आदिवासी समाज की परंपरा और संस्कृति गंभीर संकट में पड़ जाएगी। ग्रामीणों को उम्मीद है कि प्रदेश की सरकार इस संवेदनशील विषय पर कड़े कदम उठाएगी और वनवासियों को प्रलोभन और चमत्कार के नाम पर बहकाने वाले इस खेल को रोकने में सफल होगी ¹.



