
छात्रावासों में चपरासियों का राज! बोड़ला के बालक छात्रावास में नाबालिगों से मजदूरी — अधीक्षक गायब, बच्चे जान जोखिम में!
कबीरधाम जिले के बोड़ला विकासखंड में संचालित प्री-मैट्रिक अनुसूचित जनजाति बालक छात्रावास में जिम्मेदारों की लापरवाही और संवेदनहीनता खुलकर सामने आई है। जहाँ बच्चों को शिक्षा और सुरक्षा देने का दावा किया जाता है, वहीं हकीकत यह है कि छोटे-छोटे छात्र खुद सब्ज़ियों के थैले ढो रहे हैं, और अधीक्षक रात में कभी छात्रावास में रुकते ही नहीं!
घटना बोड़ला बाजार की है — जहाँ 15 से 20 नाबालिग छात्र सब्ज़ियों से भरे थैले उठाकर करीब एक किलोमीटर दूर अपने छात्रावास तक ले जा रहे थे। इस दौरान छात्र रायपुर-जबलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग और बोड़ला बायपास पार करते नज़र आए — जहाँ रोज़ाना भारी वाहनों की आवाजाही रहती है।
सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि चपरासी वहीं खड़ा बच्चों को आदेश दे रहा था, जबकि वह खुद हाथ पर हाथ धरे तमाशा देखता रहा।
जब अधीक्षक से इस बारे में पूछा गया तो उनका चौंकाने वाला जवाब आया —
“बच्चे बाजार जाएंगे, और इतने ही जाएंगे।”
अर्थात, बच्चों से बाजार के भारी काम करवाना अब नियम बन चुका है!
जब इस पूरे मामले की जानकारी सहायक आयुक्त पटेल को दी गई तो उन्होंने भी “अधीक्षक से मिलकर बात कर लो” कहकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया।
स्थानीय सूत्रों का कहना है कि बोड़ला ही नहीं, बल्कि जिले के लगभग सभी छात्रावासों में अधीक्षक रात्रि में अनुपस्थित रहते हैं। छात्रावास चपरासियों के भरोसे चल रहे हैं — न अनुशासन है, न सुरक्षा व्यवस्था।
ग्रामीणों और अभिभावकों का कहना है कि अगर जल्द ही जिला प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया, तो किसी दिन कोई बड़ा हादसा हो सकता है। छात्रों की सुरक्षा और सम्मान की बात करने वाले अधिकारी आज खुद चुप हैं, जबकि मासूम बच्चे रोज़ “प्रशासनिक लापरवाही” की कीमत चुका रहे हैं।
👉 सवाल उठता है:
क्या जनजातीय बच्चों की देखरेख के नाम पर सरकारी धन की बर्बादी की जा रही है?
क्या बोड़ला समेत जिले के सभी छात्रावासों की वास्तविक स्थिति की जांच नहीं होनी चाहिए?
अब वक्त आ गया है कि जिला प्रशासन नींद से जागे,
वरना अगली ख़बर किसी हादसे की हो सकती है!



