कबीरधामछत्तीसगढ़

कवर्धा – छत्तीसगढ़ की विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा समुदाय के पर्यावास अधिकार को लेकर 20 मई से 28 मई तक चलाया गया 8 दिवसीय जागरूकता अभियान

कुमार सिंग माठले की रिपोर्ट

कवर्धा – छत्तीसगढ़ की विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा समुदाय के पर्यावास अधिकार को लेकर 20 मई से 28 मई तक चलाया गया 8 दिवसीय जागरूकता अभियान बुधवार को ग्राम भाकुर में समापन के साथ संपन्न हो गया। इस अभियान में पण्डरिया क्षेत्र की 20 बैगा बसाहटों के करीब 129 पारंपरिक मुखियाओं ने भाग लिया।

यह अभियान आदिवासी समता मंच द्वारा चलाया गया, जिसका मकसद था कि बैगा समाज अपने पर्यावरण, जमीन, जंगल और सांस्कृतिक विरासत पर जो अधिकार उन्हें मिले हैं, उनकी जानकारी ले और कानूनी दावे की प्रक्रिया को समझे।
बैगा प्रदेश अध्यक्ष इतवारी राम मछिया ने बताया, “यह अधिकार बैगाओं को अपने परंपरागत पर्यावास को बचाने और आने वाली पीढ़ियों को मजबूत आधार देने का काम करेगा।”

अनिमा बनर्जी, संयोजक, आदिवासी समता मंच ने बताया कि पण्डरिया के 11 बैगा बसाहटों में 13 गांवों के समूह स्तर पर प्रशिक्षण और जनजागरूकता कार्यक्रम हुए। इस दौरान सभी 110 बैगा बसाहटों की जानकारी, नजरी नक्शे, तथा बैगा महिलाओं के पारंपरिक अधिकारों का दस्तावेजीकरण किया गया।
सेहत्तर सिंह धुर्वे ने बताया कि सभी बसाहटों में रह रहे बैगा परिवारों की सूची तैयार कर ली गई है। यह दस्तावेज भविष्य में उनके पर्यावास अधिकार को वैधानिक रूप से मजबूत करेंगे।
कार्यकर्ता हेमंत कुमार गढ़ेवाल ने बताया कि बैगाओं के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, पर्यावरणीय और सांस्कृतिक जीवन से जुड़ी जानकारियों का गांववार दस्तावेज तैयार किया गया है। दशमी बाई बैगा ने कहा कि इस प्रक्रिया में महिलाओं की भूमिका और अधिकारों को प्राथमिकता दी गई।
मुखिया गौठुराम बरंगिया बोले, “जब अधिकार से पर्यावरण मिलेगा, तभी हम अपने जंगल-पहाड़ और परंपरा को बचा पाएंगे। बाहर से आने वाले खतरों से निपटना भी आसान होगा।”
डॉ. राजेश रंजन, शोधकर्ता ने बताया कि यह पूरी प्रक्रिया छत्तीसगढ़ शासन की वन अधिकार गाइडलाइन और केंद्र सरकार की ‘पंडा कमेटी ऑन हेविटाट राइट्स’ के निर्देशों के अनुरूप चलाई जा रही है। जिला वन अधिकार समिति का सहयोग भी मिल रहा है।

समापन कार्यक्रम में मनोज रठुड़िया, अनिल धुर्वे, अशोक मरावी, समेत दर्जनों कार्यकर्ता और ग्रामवासी उपस्थित थे।
110 बैगा बसाहटों का दस्तावेज तैयार
महिलाओं के पारंपरिक अधिकारों को प्रमुखता
जंगल, जमीन और संस्कृति की सुरक्षा पर फोकस
शासन की गाइडलाइन अनुसार दावा प्रक्रिया
भविष्य की पीढ़ियों के लिए कानूनी सुरक्षा का रास्ता

VIKASH SONI

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