वनभूमि पर कब्जाधारियों की गिद्ध नजर वर्षा ऋतु प्रारंभ होने के पूर्व सक्रिय हो जाते हैं कब्जाधारी नहीं की जा रही कोई कार्यवाही।

वर्षा ऋतु फिर वनभूमि पर कब्जाधारियों की गिद्ध नजर नहीं की जा रही कोई कार्यवाही।

कवर्धा:- जिले के वनांचल ईलाकों में और खासकर विकासखण्ड पंडरिया क्षेत्र में सरकार द्वारा वन अधिकार पट्टा नीति को लेकर वन भूमि में अवैध कब्जा का खेल वर्षो से चला आ रहा है।

जिसके खिलाफ क्षेत्र के प्रबुद्ध जनो द्वारा समय-समय पर शासन-प्रशासन तथा वन विभाग से शिकवा शिकायत भी की जाती रही है लेकिन दुर्भाग्य का विषय है कि प्रबुद्धजनो की इन शिकायतों को जिम्मेदारों ने कभी गंभीरता से नहीं लिया, नतीजन आज वन अधिकार पट्टा के नाम पर जिले की सैकड़ों एकड़ वनभूमि पर स्थानीय और बाहरी लोग कब्जा जमाकर बैठे हैं।
हैरानी की बात तो यह है कि यह खेल अभी समाप्त नहीं हुआ है बल्कि ग्रीष्म ऋतु के बाद प्रारंभ होने वाले वर्षाकाल को देखते हुए एक बार फिर वनांचलों की वनभूमि में अवैध कब्जा की होड़ सी मच गई है। बावजूद इसके वन विभाग और शासन-प्रशासन कोई कार्यवाही करने के हांथ पर हांथ धरे तमाशबीन की भूमिका में नजर आ रहा है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार वन परिक्षेत्र पूर्व पंडरिया के कक्ष क्रमांक 519, 520, 521,एवम 523 में अवैध कब्जाधारियों की गिद्ध नजर गड़ी हुई है और वे इस वनभूमि में अवैध कब्जा करने में जुटे हुए हैं। बताया जाता है कि इन अवैध कब्जाधारियों को वनविभाग और वनविकास निगम के कुछ अधिकारी व कर्मचारियों का संरक्षण भी प्राप्त है ।
जिसके चलते इनमें किसी प्रकार का डर दहशत नहीं देखने को मिल रहा है। वहीं खबर यह भी है कि वनभूमि में अवैध कब्जा करने वाले कब्जाधारी शासन की वन अधिकार पट्टा योजना के निर्धारित मापदण्ड के विपरीत हैं। इन लोगों के पास पहले से ही कई-कई एकड़ राजस्व भूमि है बावजूद वे वनभूमि में अवैध कब्जा करने में गुरेज नहीं कर रहे हैं। यहां बताना लाजिमी होगा कि पंडरिया क्षेत्र के बदौरा, नरसिंगपुर, कामठी, माठपुर, भड़गा, नागाडबरा, रहमानकांपा सहित अन्य ईलाकों में बीते 10-12 वर्षो के भीतर वनअधिकार पट्टा के नाम जिस ढंग से वनो की अवैध कटाई व वनभूमि में कब्जा हुआ है वह किसी से छिपा नहीं हैं।
आलम ये है कि कुछ ही वर्षो में यहां का सैकड़ों एकड़ में फैला हर भरा जंगल का बड़ा हिस्सा खेतों में तब्दील हो चुका है। माना जा रहा है कि साल दर साल जिस ढंग से इस क्षेत्र की वनभूमि खेतों में तब्दील हो रही है उसे समय रहते नहीं रोका गया तो वो दिन दूर नहीं जब लोग जंगल देखने को तरस जायेंगे।
वर्षा ऋतु प्रारंभ होने के पूर्व सक्रिय हो जाते हैं कब्जाधारी
जानकारी के मुताबिक वैसे तो अवैध कब्जाधारी वनभूमि में कब्जा को लेकर पूरे साल सक्रिय रहते हैं लेकिन वर्षाकाल प्रारंभ होने के पूर्व इनकी सक्रियता ज्यादा बढ़ जाती है। बताया जाता है कि इनमें ज्यादातर वहीं लोग सक्रिय होते हैं जो पूर्व में शासन की वनअधिकार पट्टा योजना से लाभान्वित हो चुके हैं। ऐसे लोगों द्वारा ही अपने हिस्से की पट्टा भूमि का हर साल दायरा बढ़ाकर वन भूमि को कृषि भूमि में तब्दील किया जाता है। वहीं किसी प्रकार की कार्यवाही होने पर परिवार के किसी सदस्य को खड़ा कर उनके नाम से पट्टा की मांग कर दी जाती है। वोट की राजनीति के चलते सरकार भी ऐसे लोगों को बगैर कोई छानबीन के पट्टा थमा देती है। जबकि अगर इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की जाए तो कई एकड़ वनभूमि को अवैध कब्जाधारियों से मुक्त कराया जा सकता है।
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तीन एकड़ का पट्टा और बेहिसाब वनभूमि पर कब्जा…
वन अधिकार पट्टे के नाम पर इस अंचल में सर्वाधिक वन विनाश कर वनभूमि पर अपात्रों द्वारा अवैध कब्जे के लिए कुख्यात हो चुके नागाडबरा और जामुनपानी दो ऐसे स्थान हैं जो कुछ वर्ष पहले सरकारी दस्तावेजों में वीरान गांव के रूप में दर्ज थे!
जो सरकार द्वारा तुष्टिकरण की दृष्टि से बनाई गई वनविनाश कारी योजना के चलते हजारों एकड़ में लहलहाते सागौन जंगलों को काट कर रातों रात आबाद हो गए !अब ये दोनों वन क्षेत्र जो कभी इंसान के नाम पर वीरान थे किंतु कटकटाते जंगल के लिए जाने जाते थे ठीक इसके विपरीत आज वहां जंगल वीरान और इंसान आबाद हो गए!
पंडरिया पूर्व परिक्षेत्र के तहत नरसिंहपुर सर्किल में स्थित कुल्हीडोंगरी से लेकर बदौरा के बीच फैले और वन विकास निगम के अधीन आने वाले विशाल वन क्षेत्र का पूरा नक्शा बदल चुका है ! कोदवा से पंडरिया जाने वाली सड़क के दोनों ओर कुछ ही वर्षों में विभागीय संरक्षण अथवा नजरंदाजी के चलतेआज दूर दूर तक सिर्फ खेत दिखाई देते हैं!
और विडंबना तो ये है कि इस इलाके में पट्टे पर दी गई वनभूमि का भौतिक सत्यापन भी नहीं किया जा रहा है जिसके चलते तीन एकड़ का पट्टा लेकर लोग तेरह एकड़ में कब्जा किए बैठे हैं!
इसी तरह की कहानी कोदवा सर्किल के तहत नागाडबरा, भडगा,और माठपुर के जंगलों की भी है!
अंचल के पर्यावरण प्रेमियों और पेड़ पौधों को जीवन के लिए जरूरी मानने वाले जंगल सुरक्षा के हिमायती लोगों को दुख इस बात का है कि सरकारें बदलती हैं किंतु जल और जंगल की विनाश लीला यथावत चलती रहती हैं !राजनीतिक संरक्षण और विभागीय उदासीनता के चलते भेंट चढ़ गए जंगल!